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सहकारिता नीति से आएगा विकास में जन-जन का योगदान

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लखनऊ : प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने राष्ट्रीय सहकारिता नीति-2025 के ऐतिहासिक unveilingके साथ सहकारिता क्षेत्र के लिए एक नई दिशा और व्यापक दृष्टिकोण की घोषणा कर दी है।

यह नीति मोदी सरकार की ‘सहकार से समृद्धि की परिकल्पना को मूर्त रूप देने की दिशा में एक मील का पत्थर है। इस नीति की आत्मा को यदि किसी ने आकार दिया है, तो वे हैं अंत्योदय के सिद्धांतों पर चलने वाले अमित शाह, जिनकी दूरदृष्टि, रणनीतिक क्षमता और कार्य-निष्ठा ने इसे ज़मीन से जुड़ा, समावेशी और भविष्य के भारत के अनुरूप बनाया है। यह उल्लेखनीय है

कि 2002 में जब देश में पहली सहकारिता नीति लाई गई थी, तब स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे और आज, जब देश 2025 में दूसरी सहकारिता नीति के साथ आगे बढ़ रहा है, तब भी देश का नेतृत्व भारतीय जनता पार्टी की नरेन्द्र मोदी सरकार के हाथों में है। सहकार के क्षेत्र में प्राण फूँकने वाले अमित शाह के नेतृत्व में सहकारिता मंत्रालय ने मात्र चार वर्षों में जो कायापलट किया है, वह स्वतंत्र भारत के इतिहास में अभूतपूर्व है।

कभी अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा यह क्षेत्र अब कॉर्पोरेट सेक्टर के समकक्ष खड़ा है। सहकारिता के क्षेत्र से वर्षों से गहराई से जुड़े और जमीनी वास्तविकताओं की स्पष्ट समझ रखने वाले अमित शाह ने यह सुनिश्चित किया कि यह नीति केवल कागज़ पर सीमित न रहे, बल्कि इसका हर प्रावधान गाँव, किसान, महिला, दलित, आदिवासी और समाज के अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति के जीवन में ठोस परिवर्तन लाने वाला हो।

यही कारण है कि इस नीति का मूल लक्ष्य है – 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने की यात्रा में सहकारिता क्षेत्र को एक निर्णायक भागीदार बनाना। इस नीति के जरिए वर्ष 2034 तक सहकारिता क्षेत्र के माध्यम से भारत की जीडीपी में तीन गुना वृद्धि का जो लक्ष्य निर्धारित किया गया है,

वह अपने आप में न केवल महत्वाकांक्षी है, बल्कि दूरदृष्टिपूर्ण, व्यावहारिक और रिजल्ट ओरिएंटेड भी है। इसका एक महत्त्वपूर्ण पहलू यह है कि 50 करोड़ निष्क्रिय या गैर-सदस्य नागरिकों को सहकारिता की मुख्यधारा से जोड़ा जाएगा, जिससे यह क्षेत्र ‘जन-जन का आंदोलन बन सके।

इस नीति के ज़रिये हर तहसील में पाँच मॉडल सहकारी गाँव विकसित किए जाएंगे, ये गाँव न केवल कृषि और पशुपालन का केंद्र बनेंगे, बल्कि ग्रामीण महिला सशक्तिकरण का भी जीवंत उदाहरण होंगे।

श्वेत क्रांति 2.0 को इन गाँवों से जोड़ा जाएगा ताकि महिलाओं की भागीदारी संस्थागत रूप से मजबूत हो सके। 45,000 नई PACS की स्थापना, PACS का कंप्यूटरीकरण और उन्हें 25 नई गतिविधियों में Active करना इस बात का प्रमाण है कि यह नीति केवल संस्थागत ढाँचे तक सीमित न रहे, बल्कि तकनीक और नवाचार को सबसे छोटी सहकारी इकाई तक पहुँचाया जाए।

त्रिभुवन सहकारी विश्वविद्यालय की स्थापना इस दिशा में एक ठोस कदम है, जो दर्शाता है कि भविष्य में सहकारिता क्षेत्र को प्रशिक्षित मानव संसाधन की मजबूत नींव मिलेगी। वहीं ‘सहकार टैक्सी जैसी योजनाएँ यह भरोसा दिलाती हैं कि नीति में ड्राइवर, कारीगर, किसान और श्रमिक जैसे हर वर्ग के व्यक्ति के सामाजिक संरक्षण और आर्थिक सशक्तिकरण की सोच अंतर्निहित है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जब सहकारिता मंत्रालय की स्थापना का ऐतिहासिक निर्णय लिया था,

तब यह कल्पना थी कि सहकारिता को आत्मनिर्भर भारत की नींव बनाया जाए। नीति निर्माण के सूत्रधार अमित शाह ने इस कल्पना को planned लक्षित और मिशनमोड कार्यक्रमों में तब्दील कर दिया। सहकारिता के योद्धा शाह की नीतियों से आज सहकारिता क्षेत्र न केवल पुनर्जीवित हुआ है,

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बल्कि यह एक नया ‘सहकारी भारत रचने की दिशा में चल पड़ा है, जहाँ विकास का स्वरूप केंद्रीकृत नहीं, बल्कि सहभागी और साझेदारी आधारित है। राष्ट्रीय सहकारिता नीति-2025’ इस मायने में ऐतिहासिक है कि यह 25 वर्षों के लिए न केवल एक नीति दिशा देगी, बल्कि एक आंदोलन की शुरुआत करेगी, जिसमें हर नागरिक का योगदान, हर गाँव की भागीदारी और हर क्षेत्र का विकास सुनिश्चित होगा।

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Author: theswordofindia

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