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शेख भिखारी और टिकैत उमराव सिंह के यौमे शहादत को पूरे देश में हिंदू-मुस्लिम एकता के रूप में मनाया जाए : एम.डब्ल्यू. अंसारी (आई.पी.एस.)

शेख भिखारी और टिकैत उमराव सिंह के यौमे शहादत

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आर्टिकल : शेख भिखारी और टिकैत उमराव सिंह के यौमे शहादत को पूरे देश में हिंदू-मुस्लिम एकता के रूप में मनाया जाए ” भारत की संस्कृति में हिंदू-मुस्लिम की साझा तारीख है। विभिन्न धर्मों के लोगों ने एकजुट होकर भारत की भूमि को सींचा है।

इन्हीं के बलिदान की बदौलत हम आज आजाद भारत में सांस ले रहे हैं। यह वही हिंदू-मुस्लिम एकता थी, जिसने अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया। यह एकता ही भारत को गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराने का मुख्य आधार बनी। हिंदू और मुस्लिम ने मिलकर आजादी की लड़ाई लड़ी।

चाहे वह गांधीजी और बतख मियां अंसारी हों या रामप्रसाद बिस्मिल और अशफाकउल्ला खां, डॉक्टर अंबेडकर और हसरत मोहानी हों या जनरल शाहनवाज़ और सुभाष चंद्र बोस, हर एक ने एकजुट होकर देश के लिए संघर्ष किया। यह उनका आपसी सहयोग और एकता थी, जिसका परिणाम हमें आजादी के रूप में मिला।

इन्हीं महान नामों में शेख बुखारी उर्फ भिखारी और टिकैत उमराव सिंह का नाम भी शामिल है। 1856 में जब अंग्रेजों ने हमला करने की योजना बनाई, तो शेख भिखारी और टिकैत उमराव सिंह ने अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोलने का निश्चय किया। शेख भिखारी ने टिकैत उमराव सिंह को साथ लेकर अंग्रेजों का रास्ता रोक दिया।

चुटोपल घाटी को पार करने वाला पुल तोड़ दिया गया और सड़कों पर पेड़ों को काटकर रास्ते को अवरुद्ध कर दिया गया। शेख भिखारी की सेना ने अंग्रेजों पर गोलियों की बौछार की, जिससे अंग्रेजों की सेना हतप्रभ हो गई। यह संघर्ष कई दिनों तक चलता रहा।

जब गोलियां खत्म होने लगीं, तो शेख भिखारी ने अपनी सेना को पत्थर फेंकने का आदेश दिया। इससे अंग्रेज सैनिक कुचलकर मरने लगे। इस तरह हिंदू-मुस्लिम की इस एकता ने अंग्रेजों को बुरी तरह परास्त कर दिया। आखिरकार, अंग्रेजों ने 6 जनवरी 1858 को शेख भिखारी और टिकैत उमराव सिंह को घेरकर गिरफ्तार कर लिया। 7 जनवरी 1858 को उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई और 8 जनवरी को उन्हें फांसी दे दी गई।

देश के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले इन महान स्वतंत्रता सेनानियों की कुर्बानी हमें यह सिखाती है कि यदि हिंदू-मुस्लिम एकता मजबूत हो, तो भारत वैश्विक समस्याओं का सामना आसानी से कर सकता है। आने वाली पीढ़ियां इस बात से प्रेरणा लेंगी कि जब एकजुट होकर कार्य किया जाएगा, तो भारत विश्व स्तर पर एक मजबूत और शांतिपूर्ण राष्ट्र के रूप में उभरेगा।

समाज में भाईचारा और प्रेम का संदेश फैलेगा। यही भारत के लोकतंत्र की खूबसूरती है। यह ध्यान देने योग्य है कि दूसरे टीपू सुल्तान कहे जाने वाले शहीद शेख भिखारी का मकबरा आज खस्ताहाल में है और उपेक्षित पड़ा है। यह हम सभी के लिए बेहद दुख की बात है।

हम झारखंड के सभी नागरिकों और विशेष रूप से उनके परिवारजनों से अनुरोध करते हैं कि सरकार चाहे ध्यान दे या न दे, हमें अपने शहीदों के मकबरों की देखरेख करनी चाहिए। इसलिए, हम भारत सरकार और विशेष रूप से झारखंड सरकार से अपील करते हैं कि शहीद शेख भिखारी और टिकेट उमराव सिंह का शहादत दिवस, 8 जनवरी को, राष्ट्रीय एकता और हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक के रूप में मनाया जाए।

साथ ही, झारखंड सरकार 8 जनवरी को शहीद शेख भिखारी और टिकेट उमराव सिंह को समर्पित करते हुए इसे राष्ट्रीय एकता दिवस’ घोषित करे। यह दिन झारखंड के साथ-साथ बिहार और पूरे भारत के सभी राज्यों में मनाया जाए, जो हम सभी के लिए गर्व का विषय होगा। उनके शहादत दिवस के अवसर पर, हम उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए झारखंड सरकार और राष्ट्रीय सरकार से कुछ माँगें करते हैं

1. उनके जन्मस्थान और शहादत स्थलों को पवित्र स्थल के रूप में घोषित किया जाए और सरकार इन स्थानों का संरक्षण और सौंदर्गीकरण भी करे। उनके मकबरे की भी मरम्मत की जाए।

2. उनके आबाइ इलाके में मुख्य सड़क से उनके गाँव तक जाने वाली सड़क का नाम उनके नाम पर रखा जाए।

3. उनके नाम पर एक केंद्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना की जाए। कम से कम, झारखंड सरकार अपने अधिकार क्षेत्र में उनके नाम पर एक राज्य विश्वविद्यालय की स्थापना करे।

4. उनके नाम पर एक स्टेडियम और भर्ती केंद्र (Recruitment Center) स्थापित किया जाए। ,, 5. सरकारी योजनाओं को उनके नाम पर शुरू किया जाए।

6. उनकी जीवनी को शिक्षा पाठ्यक्रम में शामिल किया जाए।

7. रांची और अन्य विश्वविद्यालयों में उनके नाम पर पुस्तकालय खोले जाएं।

साथ ही, उन सभी स्वतंत्रता सेनानियों को राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर याद किया जाए जिन्होंने अपनी जान न्योछावर कर देश को आजादी दिलाई। ऐसे सभी कार्य किए जाएं जो राष्ट्रीय एकता को मजबूत करें, क्योंकि यही भारत की अखंडता के लिए आवश्यक है।

यह भी स्पष्ट है कि आजादी के आंदोलन में सभी स्वतंत्रता सेनानियों ने धर्म और संप्रदाय से ऊपर उठकर भाग लिया। भारत को स्वतंत्रता दिलाने में हिंदू और मुस्लिम दोनों ने मिलकर संघर्ष किया। कई ऐसे नाम हैं जिनका योगदान बहुत बड़ा था, लेकिन इतिहास के पन्नों में उन्हें जगह नहीं मिली।

इनमें से कई नाम जैसे सलामत अली, अमानत अली, शेख हारून और देवगढ़ के अन्य स्वतंत्रता सेनानी भी शामिल हैं। उन्होंने देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए, लेकिन आज इतिहास में उनका नाम तक नहीं है। सानी-ए- टीपू सुल्तान कहे जाने वाले शहीद शेख भिखारी का मकबरा आज खस्ताहाल है।

बार बार याद दिलाने के बावजूद न ही हुकूमत तवज्जोह दे रही है और न झारखंड की अवाम : इसी प्रकार अन्य स्वतंत्रता सेनानियों के मकबरों की भी स्थिति खराब है। चाहे वह अली हुसैन आसिम बिहारी हों, जिनका मकबरा इलाहाबाद में जर्जर स्थिति में है, या बतख मियां अंसारी, जिनके परिवार को आज तक न्याय नहीं मिला।

बिहार में अब्दुल कय्यूम अंसारी की कब्र भी उपेक्षा का शिकार है। सरकार के साथ-साथ हम सभी इस स्थिति के लिए जिम्मेदार हैं। आज शहीद शेख भिखारी और टिकेट उमराव सिंह के शहादत दिवस पर, हम झारखंड के सभी स्वतंत्रता सेनानियों को याद करते हैं, उन्हें सलाम करते हैं और श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।

झारखंड की जनता को शहीद शेख भिखारी के जर्जर मकबरे की तरफ विशेष ध्यान देना होगा। संघर्ष करके अपनी आवाज बुलंद करनी होगी। सरकार से यह माँग करनी होगी कि शहीद शेख भिखारी के मकबरे की देखभाल की जाए। यदि सरकार इस ओर ध्यान नहीं देती है, तो झारखंड की जनता को खुद अपने बुजुर्गों के मकबरों और विरासत की रक्षा के लिए जिम्मेदारी उठानी होगी।

शेख भिखारी और टिकैत उमराव सिंह के यौमे शहादत

  एम.डब्ल्यू. अंसारी (आई.पी.एस.)

 

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Author: theswordofindia

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