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खवातीन की तालीम के लिए मेहनत करने वाली शेख फातिमा इतिहास के पन्नों में हुई शुम : एम.डब्ल्यू.अंसारी (आई.पी.एस)

शेख फातिमा का इतिहास

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आर्टिकल : खवातीन जब-जब तारीख रकम करती हैं . मुल्क का नाम रौशन करती है तो लाजमी तौर पर हिंदुस्तान की पहली मुस्लिम खातून टीचर और प्रिसिपल, मुल्क में पहले लड़कियों के स्कूल खोलने में अहम किरदार अदा करने वाली अजीम खातून, तालीम और समाजी इस्लाह के मैदान में खदिमत करने वाली, घर-घर जाकर लड़कियों को तालीम के बारे में आगाह करने वालीं, गूगल दूडल अवॉर्ड से नवाजी गई शेख फातिमा का फत्र के साथ जिक्र किया जाता है।

वाजेह रहे कि ये वही फातिमा शेख हैं जिन्होंने एक ऐसे दौर में समाज से लड़कर खवात्तीन की तालीम के लिए कदम उठाया था, जब समाज में खवातीन की तालीम को बुरा समझा जाता था। आज उनका यौमे पैदाइश है। हम ऐसी जानबाज खातून को सलाम करते हैं और खिराज-ए-तहसीन पेश करते हैं।

उस्मान शेख की बहन फातिमा शेख आज ही के दिन जनवरी 1827 को महाराष्ट्र के शहर पूना में पैदा हुई। आज खयातीन जिस मुकाम पर हैं और उनकी तरक्की देखकर हैरान होने वालों को याद रखना चाहिए कि जब खयातीन की तालीम को अच्छा नहीं समझा जाता था तालीम देने वालों को तरह-तरह से सताया जाता था. यहाँ तक कि उन पर पाथर और गोबर तक फेंका जाता था।

ऐसे मुश्किल हालात में फातिमा शेख और उनके माई उस्मान शेख ने बहादुरी दिखाई। फातिमा शेख ने ना सिर्फ स्कूल में पढ़ाया, बल्कि हर घर जाकर बच्चियों को तालीम की अहमियत समझाई और उन्हें तालीम हासिल करने की तरगीब दी।

उन्होंने अपने घर में खचातीन का स्कूल खोला, जिसकी वजह से उन्हें समाज की नाराजगी का सामना करना पढ़ा, मगर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। उनके हमराह सावित्री बाई फुले भी थी, लेकिन आज सावित्री बाई फुले का नाम तो हर जगह मिलता है. मगर उनके हर लम्हा साथ देने वाली फातिमा शेख का नाम कहीं खो गया है या यूं कहें कि हमने ही भुला दिया है। फातिमा शेख जैसी अजीम खातून का जिक्र तारीख के औराक से तकरीबन गायब ही है।

किसी ने क्या खूब कहा है. ‘जो कौम अपने मुहसिन और अपनी तारीख भुला देती है. वो कौम खुद-ब-खुद खत्म हो जाती है। इसमें कोई शक नहीं कि ये शेख फातिमा और उनके साथियों की कुर्बानियों का ही नतीजा है कि खवातीन हर मैदान में अपना परचम लहरा रही है।

चाहे वो तालीम का मैदान हो, खेल-कूद सियासत या कारोबार का, खयातीन और लड़कियों ने तालीम हासिल करके हर मैदान में कामयाबी पाई है। यकीनन इसकी बुनियाद वही है जो उस दौर में शेख फातिमा उरमान शेख सावित्री बाई फुले और ज्योतिबा फुले ने डाली थी : वाजेह रहे कि शेख फातिमा को गूगल डूडल अवॉर्ड से भी नवाजा गया है।

ये ऐजाज 9 जनवरी 2021 को गूगल डूडल के जरिए हिंदुस्तान की पहली खातून टीचर के तौर पर दिया गया, जिन्होंने समाज में तालीम को फरोग दिया और अपनी पूरी जिंदगी तालीम के लिए वक्फ कर दी। हमें शेख फातिमा के बौमे पैदाइश पर ये अहद करना चाहिए कि चाहे एक रोटी कम खाएँगे लेकिन अपने बच्चों को जरूर तालीम याफ्ता बनाएँगे।

यही बच्चे कौम मिल्लसत और मुल्क का मुस्तकबिल है। जब हर जगह तालीम याफ्ता लोग होंगे तो मुल्क में अमन-ओ-चीन कायम होगा, इंसाफ होगा और हकीकी मायनों में भारत एक जम्हूरी मुल्क कहलाएगा।

फातिमा कौन है

  एम.डब्ल्यू.अंसारी (आई.पी.एस)

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Author: theswordofindia

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