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उर्दू और हिंदी भाषा के महान लेखक कृष्णचंद्र की यौमे पैदाइश, अदकी हलकों ने ही किया फरामोशः एम.डब्ल्यू. अंसारी (आईपीएस)

उर्दू और हिंदी

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20 से अधिक उर्दू उपन्यासों, 30 लघु कथाओं के संग्रह और रेडियो नाटकों के अनगिनत संग्रहों के लेखक, उर्दू और हिंदी लघु कथाओं और उपन्यासों के लेखक, कृष्ण चंद्र का जन्म आज ही के दिन, 23 नवंबर, 1914 को भरतपुर, राजस्थान में हुआ था।

कृष्ण चन्द्र ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा तहसील महेंद्रगढ़ में प्राप्त की। उन्होंने पांचवी कक्षा से उर्दू भाषा का अध्ययन शुरू किया और आठवीं कक्षा में फारसी को वैकल्पिक विषय के रूप में चुना।

उन्होंने विक्टोरिया हाई स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण की। इसके बाद उन्होने कॉलेज में दाखिला लिया। इसी दौरान उनकी मुलाकात भगत सिंह के साथियों से हुई और वे क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लेने लगे।

उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और दो महीने तक हिरासत में रखा गया। कृष्णचंद्र ने अपने कथा साहित्य और उपन्यासों के माध्यम से प्रगतिशील साहित्य को आगे बढ़ाया और उसे विश्व मंच पर पहुंचाया।

उन्होंने कई उपन्यास और 500 से ज्यादा लघु कहानियाँ लिखीं। उनकी कृतियों का अनुवाद दुनिया की विभिन्न भाषाओं में किया गया है। ऐसा कहा जाता है कि कृष्ण चन्द्र के पास एक कवि का हृदय और एक कलाकार की कलम है।

उनके विषय भारतीय जीवन और उसकी समस्याओं को इर्द-गिर्द घूमते हैं। यहां यह उल्लेखनीय है कि कृष्णचन्द्र जैसे श्रेष्ठ लेखक एवं अदीब ने अपनी रचनाओं में उर्दू भाषा का खूब प्रयोग किया है

और आपने लम्बे समय तक इस प्रिय भाषा उर्दू में अपनी सेवाएँ प्रदान की हैं। इससे पता चलता है कि उर्दू भारत की बेटी है जो भारत में पली-बढ़ी है और विभिन्न कवियों और लेखकों ने हिंदी भाषा में तो अपनी रवनाएँ लिखी ही हैं,

उन्होंने बिना किसी भेदभाय को उर्दू में भी अपना कलाम प्रस्तुत किया है। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि उर्दू किसी खास जात और धर्म की भाषा नहीं बल्कि भारत की भाषा है और नियम यह है कि जो जहाँ जन्म लेता है

उसकी निसबत वहीं की तरफ की जाती है. चाहे वह इंसान हो या भाषा। उर्दू भाषा का जन्म मी भारत में हुआ, इसीलिए इस भाषा को भारत की बेटी और हिंदी की बहन कहा जाता है। गौरतलब है कि भारत एक ऐसा देश है

जिसमें सैकड़ों बोलियों और अनेक माषाएँ बोली जाती है। हमारा देश भारत भाषाओं का घर है। हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, पारसी और बौद्ध के मेल और मिश्रण से उर्दू भाषा का विकास हुआ है।

लेकिन आज भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में इस प्रिय उर्दू भाषा के साथ भेदभाय किया जा रहा है। हालीकि, यदि आप अतीत पर नजर डालें, तो आपको पता चलेगा कि क्या हिंदू या मुसलमान सभी उर्दू में शिक्षित थे और कई बार गैर-उर्दू नाम वाले लोग भी बहुत अच्छी उर्दू बोलते थे, क्योंकि उर्दू एक मीठी और प्यारी भाषा है

इसे किसी विशेष धर्म से जोडना नासमझी है। यह भी कटु सत्य है कि एक ओर जिसे भारत की बेटी और हिन्दी की बहन कहा जाता है. यहीं दूसरी ओर प्रिय उर्दू भाषा को नष्ट करने का प्रयास होता रहा है और हो रहा है, जो एक कलंक है

भारत के लोकतंत्र को खत्म करने की साजिश हो रही है। आज उर्दू भाषा और उर्दू भाषा से जुड़े विद्यार्थियों और प्रेमियों की समस्याएँ शायद किसी भी अन्य भाषा से अधिक हैं। जो छात्र अपनी खुशी से उर्दू भाषा और साहित्य सीखना चाहते हैं

और जो कृष्ण चंद्र, मुशी प्रेमचंद, मुंशी नवल किशोर राजा जय किशन, बृज नारायण चकबस्त आदि को अपना आदर्श मानकर उर्दू में अपनी सेवाएं देना चाहते हैं। उनके लिए शिक्षक उपलब्ध नहीं कराए जा रहे है।

कभी किसी संस्थान विशेष द्वारा उर्दू भाषा में पेपर न छापने के नाम पर इन छात्रों का मनोबल गिराया जाता है, तो कभी सरकारी विभाग से ही प्रिय भाषा के शब्दों को हटाने की बात कर संविधान का उल्लंघन किया जाता है।

इसकी जितनी निंदा की जाए कम है अंत में हम केवल इतना ही कह सकते हैं कि कृष्ण चन्द्र और उनके जैसे अन्य कवियों ने अपने कलाम से यह बता दिया है कि भारत की यह बेटी सदैव प्रेम और स्नेह की शिक्षा देती रही है और देती रहेगी।

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उर्दू और हिंदी भाषा के महान लेखक कृष्णचंद्र की यौमे पैदाइश

इसे मिटाने के प्रयास करने वाले हर ज़माने में आते और जाते रहे हैं लेकिन प्रिय भाषा उर्दू ने कभी भी प्यार का जवाब नफरत से नहीं दिया। उर्दू सीखना है और उर्दू सिखाना है यही कृष्ण चन्द्र जैसे हजारों उर्दू प्रेमियों को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

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Author: theswordofindia

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