एम.डब्ल्यू. अंसारी (आई.पी.एस)
भारत में विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों के लोग रहते हैं। हर एक की अपनी परंपरा और संस्कृति होती है, जिसका पालन करने की भारत के संविधान ने हर नागरिक को पूरी आजादी दी है, चाहे वह बहुसंख्यक हो या अल्पसंख्यक। संविधान ने प्रत्येक नागरिक को मौलिक अधिकार दिये हैं जिन्हें छीना नहीं जा सकता।
अल्पसंख्यक समुदायों के कल्याण, उनके अधिकारों और उनकी सुरक्षा के लिए सरकारी और सामाजिक स्तर पर जागरूकता बढ़ाने के लिए पूरे देश में 18 दिसंबर को अल्पसंख्यक अधिकार दिवस मनाया जाता है।
भारत में सभी धर्मों के लोग रहते हैं। जहां विभिन्न अल्पसंख्यक समुदाय जैसे मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और अन्य अल्पसंख्यक हैं। इन अल्पसंख्यक समुदायों को उनके धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक अधिकारों की सुरक्षा की आवश्यकता है ताकि वे सामाजिक विकास में भाग ले सकें।
हर साल अल्पसंख्यकों के अधिकारों के दिन को मनाने का उद्देश्य यही है कि अल्पसंख्यक समुदायों के साथ सामाजिक न्याय और समानता का प्रचार-प्रसार किया जाए।
इस दिन को मनाने का मकसद यह है कि अल्पसंख्यकों के अधिकारों की अहमियत को उजागर किया जाए और उन्हें उनके अधिकारों के बारे में बताया जाए और उन्हें उनके पूरे अधिकार दिए जाएं। बिना किसी भेदभाव के सभी धर्मों और समुदायों के साथ-साथ अल्पसंख्यक समुदायों को भी समान अधिकार मिलें, यही इस दिन के मनाने का मुख्य उद्देश्य है।
गौरतलब है कि जहां एक तरफ पूरे देश में अल्पसंख्यकों के अधिकारों का दिन मनाया जा रहा है, वहीं दूसरी तरफ हमारे देश के अल्पसंख्यकों की स्थिति क्या है, यह किसी से छुपा हुआ नहीं है।
देश में जगह-जगह हिंसा हो रही है। कभी सीएए / एनआरसी तो कभी यूएपीए के नाम पर परेशान किया जा रहा है। वक्फ बिल, हिजाब, तीन तलाक जैसे मुद्दे उठाकर शरीयत और धार्मिक मामलों में दखलअंदाजी की जा रही है।
बुलडोज़र कल्चर के जरिए तमाम प्रकार की जुल्म और ज़्यादतियां की जा रही हैं। कहीं कोई युवा पुलिस का शिकार हो रहा है तो कहीं भीड़ किसी निर्दोष को मार डालती है। गाय के नाम पर बेगुनाहों को पीट-पीट कर मार डाला जा रहा है।
पुलिस की मौजूदगी में हिंदूवादी लोग मुसलमानों के घरों पर हमले कर रहे हैं और उनके कारोबार को तबाह करने और अपने घृणा के भावों को व्यक्त करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे।
कभी बाजारों में मुस्लिम दुकानों को निशानज़द करके धमकाया गया, पोस्टर लगाए गए और एक बड़ी भीड़ लाकर उनके दुकानों पर हमले किए गए और पुलिस मूकदर्शक बनी रही।
कभी असम में पॉक्सो एक्ट और अन्य कारणों से फिर उत्तर प्रदेश में जगह-जगह हिंसा हुई, महिलाओं की अस्मत लूटी गई, मॉब लिंचिंग हुई, कोर्ट में हत्या हो या फिर पुलिस की हिरासत में हत्या, यह सब हुआ और हो रहा है और पुलिस, प्रशासन और सभी राजनीतिक पार्टियां मूकदर्शक बनी रही हैं। अल्पसंख्यकों पर हो रही जुल्म और ज्यादतियों के खिलाफ सभी नाम निहाद सेक्युलर पार्टियों के नेता चुप क्यों हैं? यह चिंता का विषय है। इस चुप्पी से वोट नहीं मिलने वाला है।
अभी भी मनिपुर जल रहा है, खाक होने का इंतजार हो रहा है। मध्य प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र के अधिकांश इलाकों में एससी-एसटी और अल्पसंख्यकों को मारा पीटा और जेल में डाला गया, तो कभी उत्तराखंड में खुलेआम 40 मुस्लिम परिवारों को घर से बाहर निकालने का आदेश जारी किया गया।
मामूली सी बात पर हिजाब के बहाने से दमोह के गंगा जमना स्कूल पर बुलडोजर चलवाया गया और कभी उज्जैन और बुरहानपुर में आदिवासी और अल्पसंख्यकों पर जुल्म किया गया।
पतंग डोर मामले में पूरा घर ही जमींदोज कर दिया गया। धर्म परिवर्तन के आरोप में ईसाइयों को जगह-जगह परेशान किया गया। कुल मिलाकर यह कि शायद ही कोई ऐसा राज्य हो जहां एससी-एसटी, दलित, ईसाई और खासकर अल्पसंख्यक लोग शिकार न हुए हों।
हकीकत यह है कि बाबा साहब के बनाए हुए संविधान में जो अधिकार अल्पसंख्यकों को दिए गए हैं, आज उनसे अल्पसंख्यक समुदाय को वंचित किया जा रहा है। संविधान की धारा 25, 26, 29 और 30 में अल्पसंख्यकों को जो अधिकार दिए गए हैं, आज सभी समुदायों को उनसे वंचित किया जा रहा है।
सबसे अहम बात यह है कि अल्पसंख्यकों को अपने धर्म पर अमल करने की आजादी मिलनी चाहिए और उन्हें अपनी इबादतगाहों की सुरक्षा की गारंटी मिलनी चाहिए। लेकिन आज सत्ताधारी खुद इबादतगाहों की पवित्रता (तकददुस) को पामाल कर रहे हैं।
पहले बाबरी मस्जिद, फिर ज्ञानवापी, मथुरा की जामा मस्जिद और अब संभल, अजमेर, धार, दिल्ली, मंगलोर, बदायूं, जौनपुर और न जाने कितने ही शहरों की मस्जिदों, मकबरों, मजारों की बेहुरमती की तैयारी की जा रही है, जो कि संविधान के खिलाफ तो है ही, एक विशेष समुदाय के खिलाफ सोची-समझी साजिश प्रतीत होती है। यह जुल्म और ज्यादतियां देश की एकता और अखंडता के लिए बेहद खतरनाक हैं और न जाने यह ,,, जुल्म और ज्यादतियां कहां जाकर रुकेंगी?
और अगर नहीं रुकीं तो क्या भारत विश्व गुरु बन पाएगा या हमेशा के लिए बदहाल, बर्बाद और अंदर से कई टुकड़ों में बंट जाएगा?
अल्पसंख्यकों को शैक्षिक अवसर प्रदान करना बहुत जरूरी है ताकि वे सामाजिक और आर्थिक विकास में भाग ले सकें। उन्हें आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने के लिए विशेष योजनाएं और कार्यक्रम तैयार किए जाने चाहिए। राजनीति में बराबरी की हिस्सेदारी दी जानी चाहिए।
अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय को अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करने के लिए काम करना चाहिए, लेकिन मंत्रालय लगभग खत्म हो चुका है। अल्पसंख्यकों की भलाई के लिए जितनी भी योजनाएं थीं, उन्हें बंद कर दिया गया है या केवल नाम मात्र रह गई हैं। बजट खत्म कर दिया गया है।
इसके तहत आने वाले संस्थान MAEF और NMFC को समाप्त किया जा रहा है। जरूरत इस बात की है कि छात्रों के लिए स्कॉलरशिप और शैक्षिक सहायता जिस तरह अन्य धर्मों और समुदायों को प्रदान की जाती है, वैसे ही उनके लिए भी की जाएं। लेकिन तमाम प्रकार के स्कॉलरशिप और सहायता लगभग बंद कर दी गई हैं या केवल नाम के लिए रह गई हैं।
एक तरफ तो देश के प्रधानमंत्री ‘सब का साथ, सब का विकास’ का नारा देते हैं, वहीं दूसरी तरफ अल्पसंख्यकों के साथ हो रही जुल्म और ज्यादतियों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। प्रधानमंत्री बताएं कि क्या मुसलमानों का विकास हुआ है?
या उनके हिस्से में सिर्फ जुल्म और ज्यादतियां आई हैं? आज प्रधानमंत्री पसमांदा का राग अलापते फिरते हैं, लेकिन 10 अगस्त 1950 (341 (1)) के राष्ट्रपति आदेश को समाप्त करने की बात नहीं करते, जो कि पसमांदा मुसलमानों के साथ संविधानिक भेदभाव है।
लगातार एक विशेष पार्टी के नेता बयानबाजी करते हैं और अल्पसंख्यकों को मिलने वाले बुनियादी अधिकारों की हनन करते हैं, उन पर प्रतिबंध लगाना चाहिए। अल्पसंख्यकों की धार्मिक स्वतंत्रता को समाप्त करने की कोशिशें की जा रही हैं। शिक्षा से वंचित करने की कोशिशें भी जोर पकड़ रही हैं, इन सब पर रोकथाम करना बेहद जरूरी है।
आखिर में ये कि इस दिन के मौके पर बस इतना ही कहा जा सकता है कि अल्पसंख्यकों के अधिकारों का दिन एक ऐसा अवसर है जब हम अपने समाज में समानता, न्याय और भाईचारे की अहमियत को स्वीकार करते हैं। यह दिन हमें याद दिलाता है
कि भारत में हर व्यक्ति, चाहे वह किसी भी धर्म, जाति या संस्कृति से संबंध रखता हो, उसे अपने अधिकारों की सुरक्षा का अधिकार प्राप्त है। अल्पसंख्यक समुदायों को एक सुरक्षित, प्रगतिशील और समावेशी सामाजिक वातावरण प्रदान करना हर नागरिक की जिम्मेदारी है, ताकि हर व्यक्ति अपने सपनों को हकीकत में बदल सके।
Author: theswordofindia
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