Barabanki News : देवां मेला दंगल प्रतियोगिता देवां मेले में आयोजित दंगल प्रतियोगिता भारतीय पहलवानी की पारंपरिक धरोहर को जीवंत बनाए रखती है। इस अखाड़े में स्थानीय और बाहरी पहलवान अपनी कुश्ती कला का प्रदर्शन करते हैं। मिट्टी के अखाड़े में दांव-पेंच और दमखम का प्रदर्शन करते हुए पहलवान हर साल हजारों दर्शकों का दिल जीतते हैं। यहां पुरुष और महिला पहलवानों दोनों की भागीदारी ने इसे और भी खास बना दिया है। विजेता पहलवानों को सम्मान और पुरस्कार प्रदान किया जाता है। यह प्रतियोगिता न केवल शारीरिक शक्ति का प्रदर्शन है, बल्कि धैर्य, अनुशासन और समर्पण का प्रतीक भी है।
देवां मेला दंगल प्रतियोगिता: परंपरा, शक्ति और रोमांच का संगम
हर साल की तरह, इस बार भी देवां मेले में आयोजित दंगल प्रतियोगिता ने खेल प्रेमियों के बीच जबरदस्त उत्साह और ऊर्जा का संचार किया। यह मेला केवल धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजनों का केंद्र नहीं है, बल्कि यहां परम्परागत खेलों को भी बढ़ावा दिया जाता है। दंगल प्रतियोगिता इसकी पहचान बन चुकी है।
दंगल का ऐतिहासिक महत्व
देवां मेला उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के देवां शरीफ में आयोजित होता है। इसकी स्थापना सूफी संत हाजी वारिस अली शाह की स्मृति में की गई थी। मेला भारतीय संस्कृति की विविधता और परंपराओं का प्रतीक है। इसमें शामिल होने वाली दंगल प्रतियोगिता पहलवानी के प्रति भारतीय जनमानस की गहरी भावनाओं को उजागर करती है।
दंगल, जिसे कुश्ती भी कहा जाता है, भारतीय ग्रामीण क्षेत्रों में खेला जाने वाला प्रमुख खेल है। इसका संबंध शक्ति, धैर्य और कुशलता से है। यह सिर्फ एक खेल नहीं, बल्कि एक परंपरा है, जो पीढ़ियों से चली आ रही है। ग्रामीण क्षेत्रों के पहलवान अपनी कला का प्रदर्शन इस मंच पर करते हैं।
देवां मेले दंगल प्रतियोगिता की खासियत
हज़ारों की भीड़ और दमदार पहलवान
इस बार के दंगल प्रतियोगिता में भीड़ का उत्साह देखते ही बन रहा था। पूरे क्षेत्र से कई कुशल पहलवानों ने भाग लिया। हर पहलवान ने अपनी विशिष्ट कुश्ती शैली से दर्शकों का मन मोह लिया। हज़ारों की संख्या में दर्शक मैदान के चारों ओर जमा थे, जो हर दांव और हर पैंतरे पर जोरदार तालियां बजा रहे थे।
देवां मेले दंगल प्रतियोगिता पुरस्कार और सम्मान
इस प्रतियोगिता में विजेता पहलवान को न केवल बड़ी धनराशि और पुरस्कार से नवाजा गया, बल्कि उसे सामाजिक सम्मान भी मिला। दंगल प्रतियोगिता में जीत हासिल करना किसी भी पहलवान के लिए गर्व की बात होती है। यह सिर्फ कुश्ती के दांव-पेंच की नहीं, बल्कि मानसिक और शारीरिक धैर्य की परीक्षा होती है।
देवां मेले में दंगल, कुश्ती के नियम और परंपरा
देवां मेले में होने वाली दंगल प्रतियोगिता परंपरागत भारतीय कुश्ती के नियमों के आधार पर होती है। पहलवान मिट्टी के अखाड़े में लड़ते हैं, जिसमें जीत का निर्णय उसके कौशल, दमखम और संतुलन के आधार पर किया जाता है। प्रत्येक पहलवान का ध्यान अपने विरोधी को मात देकर उसे पटखनी देने पर होता है।
देवां मेले में दंगल प्रतियोगिता के मुख्य आकर्षण
इस साल की प्रतियोगिता में कई आकर्षण थे, जिनमें शामिल थे:
- विविध आयु वर्ग के पहलवान: बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक, हर आयु वर्ग के पहलवानों ने हिस्सा लिया।
- महिलाओं की भागीदारी: इस बार खास बात यह रही कि महिलाओं के लिए भी एक अलग दंगल प्रतियोगिता आयोजित की गई, जिसमें महिलाओं ने भी अपने दमखम का परिचय दिया।
- स्थानीय और बाहरी पहलवानों की प्रतियोगिता: देवां मेले में उत्तर प्रदेश के साथ-साथ अन्य राज्यों से भी पहलवान आए, जिससे प्रतिस्पर्धा और रोमांच बढ़ गया।
सांस्कृतिक धरोहर और खेल का संगम
देवां मेला केवल धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजनों का केंद्र नहीं, बल्कि इस प्रकार के पारंपरिक खेलों को बढ़ावा देने का भी एक मंच है। ग्रामीण भारत में कुश्ती का विशेष महत्व है। यह केवल शारीरिक शक्ति का ही खेल नहीं, बल्कि अनुशासन, समर्पण और धैर्य का भी प्रतीक है।
कुश्ती जैसे पारंपरिक खेलों को बढ़ावा देने के लिए देवां मेला एक आदर्श स्थान है। यहां न केवल पहलवानों को अपनी कला का प्रदर्शन करने का मौका मिलता है, बल्कि दर्शकों को भी परंपरा और संस्कृति से जुड़े रहने का अवसर मिलता है।