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भोपाल की विरासत बचाने सभी समुदायों ने की पहल

भोपाल की विरासत बचाने सभी समुदायों ने की पहल

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भोपाल , जिसे झीलों की नगरी और सांस्कृतिक समरसता का प्रतीक माना जाता है, अपनी विरासत को संरक्षित करने के लिए एक महत्वपूर्ण पहल का गवाह बना।

हाल ही में, विभिन्न धर्मों और समाज के वर्गों के बुद्धिजीवी, इतिहासकार, सामाजिक कार्यकर्ता और सांस्कृतिक हस्तियां एकजुट हुए। उनकी मांग थी कि शहर के ऐतिहासिक स्थल, विशेष रूप से इकबाल मैदान, को संरक्षित किया जाए और इस पर लगाए गए प्रतिबंधों को हटाया जाए।

यह स्थान, जो दशकों तक सांस्कृतिक और सामाजिक गतिविधियों का केंद्र रहा है, अब उपयोग में नहीं है। इस बैठक का आयोजन कमला पार्क के दुर्रानी हॉल में किया गया, जहां सभी ने एक स्वर में भोपाल की सांस्कृतिक धरोहर को बचाने का आग्रह किया। भोपाल का ऐतिहासिक महत्व सदियों पुराना है

और इसकी सांस्कृतिक पहचान में अल्लामा इकबाल जैसे महान शायरों का योगदान रहा है। उनकी रचनाएं, जिनमें भगवान राम की प्रशंसा और “इमाम-ए-हिंद” का उल्लेख मिलता है, आज भी प्रेरणादायक मानी जाती हैं।

इकबाल मैदान उनके नाम पर बना स्थल है, लेकिन वर्तमान में यह उपेक्षा का शिकार है। बैठक में वक्ताओं ने कहा कि इसे फिर से सक्रिय करना न केवल भोपाल के लिए बल्कि देश की सांस्कृतिक धरोहर के लिए भी आवश्यक है।

बैठक में पूर्व डीजीपी एमडब्ल्यू अंसारी ने इस बात पर प्रकाश डाला कि शहर की अन्य ऐतिहासिक इमारतें भी जर्जर हालत में हैं। ताज-उल-मसाजिद, सदर मंजिल, शाहजहानाबाद गेट और गोलघर जैसे स्थलों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि प्रशासन को इनकी स्थिति सुधारने पर ध्यान देना चाहिए।

उन्होंने यह भी कहा कि नाम बदलने से विकास नहीं होता, बल्कि स्थलों के रखरखाव और संरक्षण की आवश्यकता होती है। विगत वर्षों में, भोपाल और अन्य शहरों में स्थलों और सड़कों के नाम बदलने की प्रवृत्ति देखी गई है।

इलाहाबाद को प्रयागराज और होशंगाबाद को नर्मदापुरम में परिवर्तित किया गया। भोपाल में हबीबगंज स्टेशन का नाम रानी कमलापति स्टेशन कर दिया गया, और इस्लामनगर को जगदीशपुर कहा जाने लगा।

इस पर असंतोष जताते हुए वक्ताओं ने कहा कि इन प्रयासों ने केवल विवाद पैदा किए हैं, जबकि इन स्थानों की विरासत को सहेजने की दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।

बैठक में सुझाव दिया गया कि बरकतउल्ला विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा दिया जाए और भोपाल में उर्दू, अरबी और फारसी भाषाओं के अध्ययन के लिए एक विशेष विश्वविद्यालय स्थापित किया जाए।

यह पहल न केवल शहर के सांस्कृतिक विकास को बढ़ावा देगी, बल्कि रोजगार और शिक्षा के अवसर भी पैदा करेगी। इस कार्यक्रम में विभिन्न धर्मों और समाज के लोगों ने भाग लिया और गंगा-जमुनी तहज़ीब की भावना को उजागर किया।

विरासत भोपाल नामक संगठन के तत्वावधान में आयोजित इस बैठक में, सभी वक्ताओं ने जोर दिया कि प्रशासन को इकबाल मैदान का सौंदर्यीकरण और पुनर्निर्माण करना चाहिए।

इस स्थल ने ऐतिहासिक रूप से सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों की मेजबानी की है और यह सभी समुदायों के बीच भाईचारे का प्रतीक है। अधिवक्ता सैयद साजिद अली ने कहा कि इस स्थान को सांस्कृतिक केंद्र के रूप में पुनर्जीवित करना शहरवासियों के लिए गर्व की बात होगी।

उन्होंने प्रशासन से आग्रह किया कि इस दिशा में जल्द से जल्द कदम उठाए जाएं। इस बैठक ने भोपाल के नागरिकों को एकजुटता और सांस्कृतिक संरक्षण के लिए प्रेरित किया।

वक्ताओं ने इस बात पर बल दिया कि शहर की धरोहर न केवल उसकी पहचान है, बल्कि भविष्य की पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत भी है।

सभी ने एकमत से निर्णय लिया कि वे इन स्थलों के संरक्षण और विकास के लिए मिलकर प्रयास करेंगे। यह पहल भोपाल की गंगा-जमुनी तहज़ीब को सहेजने और उसे नई पीढ़ियों तक पहुंचाने का प्रयास है।

इस बैठक में, सभी धर्मों और वर्गों के लोगों ने बिना किसी भेदभाव के हिस्सा लिया। यह आयोजन सांस्कृतिक समरसता और भाईचारे का प्रतीक बन गया।

उम्मीद है कि प्रशासन और समाज इस दिशा में मिलकर काम करेंगे और भोपाल को उसकी समृद्ध विरासत के साथ एक नई पहचान देंगे।

पूर्व आईपीएस ऑफिसर एम डब्लू (mw) अंसारी

    लेखक
    पूर्व आईपीएस ऑफिसर एम डब्लू (mw) अंसारी
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Author: theswordofindia

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