भोजपुरी नाट्य परंपरा के अमर पुरोधा और समाज सुधारक भिखारी ठाकुर की जयंती के उपलक्ष्य में दिल्ली के मंडी हाउस स्थित एलटीजी ऑडिटोरियम में भव्य आयोजन किया गया।
यह कार्यक्रम मैथिली भोजपुरी अकादमी, दिल्ली और बाबू शिवजी राय फाउंडेशन, दिल्ली के संयुक्त प्रयास से संपन्न हुआ।
इस अवसर पर भिखारी ठाकुर की विश्व प्रसिद्ध कृति *बिदेसिया* का मंचन भी किया गया। कार्यक्रम के आरंभ में परिचर्चा का आयोजन हुआ, जिसमें वरिष्ठ रंगकर्मी सुमन कुमार, कवि-गीतकार मनोज भावुक, साहित्यकार डॉ. संतोष पटेल और पत्रकार प्रमोद कुमार सुमन ने भिखारी ठाकुर के अद्वितीय नाट्य शैली और उनके सामाजिक योगदान पर गहन विचार साझा किए।
सभी वक्ताओं ने भिखारी ठाकुर को भोजपुरी समाज का क्रांतिकारी लेखक बताते हुए उनकी कृतियों की व्यापकता पर प्रकाश डाला।
परिचर्चा में भोजपुरी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग भी जोर-शोर से उठाई गई। *बिदेसिया* के मंचन ने दर्शकों को लोकसंस्कृति और समाज की जटिल सच्चाइयों से जोड़ दिया।
नाटक प्रवासी मजदूरों की पीड़ा और उनकी अनुपस्थिति में स्त्रियों के संघर्षपूर्ण जीवन को मार्मिकता से प्रस्तुत करता है।
संवादों और गीतों के मेल से सजी इस प्रस्तुति ने लोकनाट्य की परंपरा को प्रभावशाली ढंग से जीवंत किया। भिखारी ठाकुर की भूमिका निभाने वाले कुमार वीर भूषण ने अपनी संवाद अदायगी और नृत्य में गहरी लोकसंपृक्ति दिखाई।
प्यारी सुंदरी के रूप में डॉ. आकांक्षा प्रकाश ने गायकी और अभिनय से दर्शकों को प्रभावित किया। नायक बिदेसी के रूप में सहज अभिनय और सटीक गायकी ने मंच को जीवंत बना दिया। बटोही के किरदार में वीर भूषण ने हास्य और दर्द का अद्वितीय संतुलन दिखाया।
दूसरी पत्नी रखेलीन की भूमिका में रूनी मिश्रा का अभिनय दर्शकों द्वारा खूब सराहा गया।अन्य कलाकारों में सुशांत श्रीवास्तव, देव मुखर्जी, नीति शुक्ला, प्रिंस कुमार, देवाशीष और पार्थ रॉय ने अपनी भूमिकाओं को बड़ी कुशलता से निभाया।
सभी कलाकारों ने अपने अभिनय और प्रस्तुति से नाटक की गहराई को मंच पर उकेरा। इस आयोजन को सफल बनाने में राजेश पाठक और राकेश कुमार का निर्देशन मुख्य भूमिका में रहा।
संगीत में राजेश पाठक, मनीषा और हेमलता मौर्य की गायकी ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। कोरस गायकी में सुशांत श्रीवास्तव और प्रिंस कुमार ने विशेष योगदान दिया। वाद्य यंत्रों पर अतीक और वसु प्रशांत का प्रदर्शन भी बेहद सराहनीय रहा।
इस आयोजन ने भिखारी ठाकुर की विरासत को न केवल सहेजने का काम किया, बल्कि दिल्ली में भोजपुरी नाट्य परंपरा की एक मजबूत टीम तैयार करने की दिशा में भी महत्वपूर्ण कदम बढ़ाया। पूरी तरह भरे हुए ऑडिटोरियम ने यह साबित कर दिया कि भिखारी ठाकुर के नाटकों की प्रासंगिकता आज भी बरकरार है।

Author: theswordofindia
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