फतेहपुर, बाराबंकी । बज़्म-ए-तहफ़्फ़ुज़-ए-उर्दू की स्थापना यौमे उर्दू के अवसर पर की गई थी। बज़्म का उद्देश्य उर्दू भाषा की सुरक्षा, सेवा एवं साम्प्रदायिक सौहार्द को कायम रखना है।
इसकी स्थापना में स्व0 मौलाना फ़ैज़ी मज़ाहिरी व स्व0 डॉ0 तौसीफ फतेहपुरी का एहम रोल था। उक्त विचार बज़्म के तरही मुशायरे के अवसर पर अहमद एजुकेशनल एकेडमी हाल फतेहपुर में अध्यक्षता कर रहे उस्ताद शायर एडवोकेट अहमद सईद हर्फ़ ने व्यक्त किये।
उन्होंने आगे कहा कि उर्दू भाषा, साहित्य की अनमोल धरोहर है। बज़्म-ए-तहफ़्फ़ुज़-ए-उर्दू की मासिक तरही नशिस्तों एवं तरही मुशायरों का सिलसिला कई महीनों से रुका हुआ था।
लेकिन अब बज़्म की साहित्यिक सरगर्मियां एवं कार्यक्रम अब निरंतर जारी रहेंगे। हम सभी अपने बच्चों को उर्दू की तालीम ज़रूर दिलाएँ।
कारी ज़ाकिउल्लाह की तिलावत और हाफ़िज़ सलमान की नात से प्रारम्भ होने वाले इस तरही मुशायरे का संचालन हस्सान साहिर ने किया जबकि मुख्य अतिथि के रूप में जमीअत उलमाए हिन्द के ज़िला उपाध्यक्ष शाकिर बहलीमी व नगर पंचायत फतेहपुर के पूर्व सदस्य मो0 वैस अंसारी ने शिरकत की।
अहमद सईद हर्फ़ ने पढ़ा- अब तो मुन्सिफ़ भी बिकने लगे, अब तो आसां वकालत नहीं। शादाब अनवर ने पढ़ा- मशविरा उनसे क्या कीजिए, जिनमें फ़हम-ओ-फरासत नहीं।
हसन फतेहपूरी ने पढ़ा- इस क़दर सोचता हूँ हसन, सोचने की भी फुरसत नहीं। हस्सान साहिर ने पढ़ा- वार और नातावां जिस्म पर, बुज़दिली है शुजाअत नहीं।
सलमान फतेहपुरी ने पढ़ा- तंज है वो नसीहत नहीं, जिसमें शामिल मोहब्बत नहीं। इसके अलावा हसीब यावर, इमरान सहबा, शमशाद रायपूरी ने भी अपना-अपना तरही कलाम प्रस्तुत किया।
इस अवसर पर हाजी एजाज़ अहमद अंसारी, मो0 जावेद अंसारी, अब्दुल मालिक, निज़ामुद्दीन खां, ख़लीकुर्रहमान, मो0 सगीर कुरैशी, अली अशहद, मो0 अंज़र, अबू दरदा, अब्दुल्लाह आदि श्रोता उपस्थित रहे। अन्त में बज़्म के सेक्रेटरी हस्सान साहिर ने सभी शायरों और श्रोताओं को धन्यवाद ज्ञापित किया।

Author: theswordofindia
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