ब्यूरो चीफ आर एल पाण्डेय
लखनऊ । विनोबा विचार प्रवाह के एक वर्षीय मौन संकल्प का 70वां दिन पूर्ण हो चुका है। इस अवसर पर वरिष्ठ समाजसेवी रमेश भइया ने वेद चिंतन पर प्रकाश डालते हुए महत्वपूर्ण विचार साझा किए। उन्होंने वेदों के उद्धरणों के माध्यम से मैत्री और बंधुत्व के गहरे अर्थ को स्पष्ट किया।
रमेश भइया के अनुसार, मैत्री केवल प्रेम नहीं बल्कि एक कर्तव्य है। बाबा विनोबा भावे का मानना था कि इतिहास में कई बड़े शहर आए और चले गए, लेकिन गोकुल आज भी स्मृति में बना हुआ है क्योंकि वहां के समाज में समानता और प्रेम था।
वेदों के अनुसार, समाज में कोई बड़ा या छोटा नहीं होना चाहिए, बल्कि सब समान रूप से ईश्वर के सेवक होने चाहिए। आदर्श समाज को ‘हंसवर्ण’ कहा गया है, जो पवित्रता और निष्कलंकता का प्रतीक है।
बंधुत्व के संदर्भ में रमेश भइया ने वेदों की इस धारणा का उल्लेख किया कि बंधुत्व में कहीं न कहीं बंधन छिपा होता है। इतिहास में ऐसे कई उदाहरण हैं जहां शक्ति के संतुलन में मतभेद उत्पन्न हुए।
उन्होंने सुंद-उपसुंद की कथा का उल्लेख किया, जिसमें भाईचारे के बावजूद सत्ता की लालसा ने उन्हें विनाश के मार्ग पर धकेल दिया।
इसके विपरीत, पांडवों ने अपने बीच संतुलन बनाए रखा और मतभेदों को परस्पर समझौते से सुलझाया। उन्होंने यह भी बताया कि अंग्रेजी में कहा जाता है कि खून पानी से अधिक गाढ़ा होता है, लेकिन विनोबा जी का मत था कि पानी अधिक शुद्ध होता है।
इसीलिए वेदों में मैत्री को अधिक महत्व दिया गया है। मैत्री में कोई छोटा-बड़ा नहीं होता, बल्कि यह पूर्ण प्रेम और समानता पर आधारित होती है। ईसा मसीह और गौतम बुद्ध ने भी अपने शिष्यों को मित्र कहा, जिससे इस विचारधारा की पुष्टि होती है।
रमेश भइया ने वेदों के संदेश को दोहराते हुए बताया कि देवता भी तभी सहायता करते हैं जब व्यक्ति स्वयं श्रम करता है। आलसी और व्यसनी लोगों को ईश्वर की कृपा प्राप्त नहीं होती।
संत तुकाराम का कथन भी यही कहता है कि भगवान मोक्ष को किसी को उपहार में नहीं देते, बल्कि उसे प्राप्त करने के लिए मनुष्य को स्वयं प्रयास करना पड़ता है।
विद्या और ज्ञान के संदर्भ में उन्होंने कहा कि प्राचीन काल से ही विद्यार्थी प्रातःकाल उठकर गुरु से शिक्षा प्राप्त करते थे। जो व्यक्ति जागरूक रहता है, वही ज्ञान, भक्ति और सफलता प्राप्त करता है।
वेदों का संदेश है कि जागरूक व्यक्ति को ही वेदों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। रमेश भइया के विचारों से यह स्पष्ट होता है कि मैत्री केवल प्रेम नहीं बल्कि समाज के प्रति एक जिम्मेदारी है, जो समता, श्रम और जागरूकता से पूर्ण होती है।

Author: theswordofindia
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