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उर्दू भाषा को बढ़ावा देने के लिए मिलकर काम करें : M.W. Ansari (I.P.S.)

उर्दू भाषा को बढ़ावा देने के लिए मिलकर काम करें

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उर्दू भाषा हमारी मातृभाषा है, हम बचपन से उर्दू बोलते, लिखते और पढ़ते हैं। अगर हम इस्लाम धर्म की बात करें तो यह कहना गलत नहीं होगा कि अरबी के बाद सबसे ज्यादा धार्मिक किताबें किसी भाषा में हैं तो वह उर्दू है।

उर्दू भाषा एक जीवित भाषा है। जो हमारी संस्कृति और समाज की पहचान है। इसलिए हमारी ज़िम्मेदारी बढ़ जाती है कि हम अपनी भाषा के विकास और अस्तित्व की चिंता करें।

जिस प्रकार अन्य भाषाओं के उत्तराधिकारी अपनी भाषा को एक अनमोल विरासत के रूप में जीवित रखे हुए हैं, ऐसी भावना उर्दू प्रेमियों में नहीं पाई जाती है।

आज अगर हम देखें तो हमें उर्दू बोलने और जानने वालों का एक बड़ा समूह मिल जाएगा, लेकिन अगर हम इस इल्म को आने वाली पीढ़ी तक नहीं पहुंचाएंगे तो हमारी लापरवाही के कारण आने वाली पीढ़ी उर्दू को भूल जाएगी और अंग्रेजी या कोई अन्य भाषा की शरण ले लेगी।

यह भी सत्य है कि यदि कोई भी भाषा अपने बोलने वालों द्वारा ही सुरक्षित नहीं है तो निश्चित रूप से किसी अन्य भाषा से अपेक्षा नहीं की जा सकती। हमें अपनी भाषा और संस्कृति को बचाने के लिए संघर्ष करना चाहिए। क्योंकि भाषा सिर्फ एक भाषा नहीं होती, वह किसी संस्कृति होती है।

जब उर्दू के विकास और अस्तित्व और उसकी सुरक्षा की बात आती है तो इसकी जिम्मेदारी आमतौर पर हर भारतीय नागरिक की होती है। क्योंकि यह भारत की बेटी और हिंदी की बहन है और सभी भारतीय भाषाओं के सार से बनी है और लगातार बढ़ रही है, लेकिन खासतौर पर उन संस्थाओं और व्यक्तियों पर जिम्मेदारी आती है जो उर्दू के नाम पर चल रहे हैं

या जिनसे उर्दू भाषी जुड़े हुए हैं। उदाहरण के लिए, उर्दू अकादमियाँ, मसजिद कमेटी, दारूल इफ्ता वल-कज़ा और हज समिति, एनसीपीयूसीएल और उर्दू पुस्तकालय आदि। उक्त सभी संस्थाएं उर्दू लोगों से जुड़ी हैं। जैसे इमाम, मुअज़्ज़िन, खतीब, काज़ी, उर्दू दां, शायर, अदीब आदि।

इन स्थानों पर उर्दू भाषा और लिपि को अनिवार्य किया जाना चाहिए और यदि वास्तव में उर्दू के साथ किसी अन्य भाषा में संदेश देने की आवश्यकता है तो उर्दू के साथ क्षेत्रीय भाषा का प्रयोग किया जाए या मजबूरी में रोमन उर्दू का प्रयोग किया जाए तभी उर्दू को बढ़ावा मिलेगा।

अब गौर करने वाली बात यह है कि जब इन संस्थानों से जुड़े सभी लोग उर्दू पढ़ने, लिखने और जानने वाले हैं तो किसी भी विज्ञापन, संदेश या अपील को गैर-उर्दू भाषा में प्रकाशित करना कितना गैर मुनासिब काम है। मस्जिदों के इमाम या मस्जिदों के सदर !

सभी को उर्दू पढ़ना और लिखना आना चाहिए। अगर नहीं आती तो सीखना चाहिए। क्योंकि हम खुद देखते हैं कि अंग्रेजी माध्यम के स्कूल अभिभावकों को अपने नोटिस और सूचनाएं अंग्रेजी भाषा में ही भेजते हैं। अब चाहे उन्हें अंग्रेजी आती हो या नहीं। ऐसे व्यक्ति के पास जाते हैं जो अंग्रेजी

जानता हो या सीखने, पढ़ने, समझने का प्रयास करतें है। लेकिन स्कूल प्रबंधन का यही रुख है कि उन्हें अंग्रेजी को ही बढ़ावा देना है। इसलिए हम सभी प्रकार के संदेश, सूचनाएं उसी भाषा में भेजेंगे।

इसी प्रकार जितनी भी उर्दू संस्थाएं उर्दू मुहिब्बाने उर्दू से संबंधित है अगर वे उर्दू के प्रति यही रवैया अपनाते हैं, तो यही उर्दू के प्रति न्याय का संकेत है। फिर चाहे लाख पक्षपातपूर्ण प्रयास हों, उर्दू विकास के पथ पर चलती रहेगी और हर जगह उर्दू बोली जायेगी

हाल ही में दीनी इदारों द्वारा सोशल मीडिया पर जारी किए गए सर्कुलर देखें। रमज़ानुल मुबारक आ रहा है इसलिए रमजान से जुड़े संदेश मिल रहे हैं। रमजान से जुड़े ये मैसेज गैर-उर्दू भाषा में प्रकाशित किए जा रहे हैं जिसे देखकर हैरानी होती है।

हालांकि ये सर्कुलर मस्जिदों के सदर और सचिवों के नाम हैं लेकिन अफसोस की बात यह है कि ये सभी लेटर गैर-उर्दू भाषा में भेजे जा रहे हैं। दीनी इदारों द्वारा जारी किया जाने वाला प्रत्येक लेटर यदि उर्दू भाषा में हो तो बेहतर है। मस्जिदों में सदर चुनते समय ऐसे लोगों की तलाश की जानी चाहिए जो कम से कम उर्दू पढ़ना जानते हों।

साथ ही ऐसी व्यवस्था की जानी चाहिए थी जहां उर्दू पढ़ना-लिखना सिखाया जाए लेकिन इसके विपरीत गैर-उर्दू भाषा का प्रयोग खेदजनक है।

हमें ये शिकवा अपने संस्थानों से है क्योंकि ये वो मंच हैं जहां से उर्दू को नया आयाम मिल सकता है। उर्दू के प्रचार-प्रसार के लिए नये सुझाव दिये जा सकते हैं। देश में उर्दू को कैसे बचाया जाए और कैसे बढ़ावा दिया जाए, इस पर सभी मिलकर विचार-विमर्श कर सकते हैं।

वर्तमान समय में उर्दू के लिए जो कार्य किया जा रहा है वह अपर्याप्त है। ऐसा क्या किया जाए कि हमारे देश की अनमोल पूंजी जो उर्दू भाषा में है, उसे बचाया जा सके।

भारत में संचार की राष्ट्रीय भाषा के रूप में हिंदी, अंतर्राष्ट्रीय संचार की भाषा के रूप में अंग्रेज़ी है लेकिन उर्दू, जो पूरे भारत को एक सूत्र में बांधती है, प्यार सिखाती है, भारत की बेटी है, हिंदी की बहन है।

भारतीय भाईचारे की प्रतीक है, गंगा देश की सभ्यता की पहचान और महान विरासत है इस दृष्टि से भारतीय भाषा के रूप में उर्दू शीर्ष पर मालूम पड़ती है। साथ ही, मज़हबी भाषा के रूप में, अरबी के साथ-साथ उर्दू भी बहुत महत्वपूर्ण है।

जिसे जानना हम सभी के लिए बेहद जरूरी है और अगर हम इसके लिए प्रयास भी नहीं करते तो यह हमारी लापरवाही है। इस समय विश्व में कहीं न कहीं, विशेषकर अरब देशों और यूरोपीय देशों में उर्दू व्यापक रूप से बोली जाती है।

विश्व के प्रमुख विश्वविद्यालयों में अरबी-फारसी के साथ-साथ उर्दू भी पढ़ाई जाती है। वर्तमान समय में उर्दू भाषा विश्व के 90 से अधिक देशों में बोली जाती है। यह संयुक्त राष्ट्र संघ (यू एन ओ) की आधिकारिक भाषा बन गई है और इसे सीखने का प्रयास न करना हमारी गलती होगी।

उर्दू भाषा को बढ़ावा देने के लिए मिलकर काम करें

हमें सिंधी, पंजाबी आदि अन्य कौमो से सीखना चाहिए कि अपनी भाषा और संस्कृति की रक्षा कैसे करें। आइए हम सब स्वयं उर्दू पढ़ने और अपने बच्चों को यह प्यारी भाषा सिखाने का संकल्प लें दीनी संस्थानों और विशेषकर उर्दू अकादमियों, मसजिद कमेटियों, दारूल इफ्ता और हज समितियों में उर्दू भाषा अनिवार्य की जानी चाहिए कि उनसे जुड़ा हर व्यक्ति उर्दू भाषा का जानकार बने तभी सही मायनों में उर्दू भाषा की रक्षा होगी और उर्द भाषा अपनी लिपि के साथ बाकी रहेगी।

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Author: theswordofindia

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